गुरुवार, 7 जुलाई 2011

हमर सबहक बाबू

हमर सबहक बाबू अद्भुत छलाह। फुटबाल खेलाइत छलाह, कसरत करैत छलाह आ बच्चा सबहक संग बच्चा बनि जाइत छलाह। अंतिम बेर हुनका से भेंट भेल, त ओ बड्ड दुखित छलाह। हम मां के लय दुर्गागंज गेल रही। बाबू क बिछान पर बैसल रही। बाबू हमर हाथ क नह देखलैन्हि, तं कहलैन्हि जे कहिया सं नहिं कटौलें। फेर पुछलैन्हि, बंबईया कालोनी देखलें। हमरा किछु बुझा नहिं पड़ल। दीदीभैया (हमर दोसर मौसी) इशारा कयलैन्हि जे पुछियौन कतय बनलैक। हम कानय लगलहुं। बाबू के एतेक कमजोर आ दुखित कहियो नहिं देखने छलियैन्हि।
जहिया दुर्गागंज जाई, शुक्र क हाट से गुलेती जरूर अबैत रहय। बिंचा (हमर मात्रिक क एकटा अद्भुत नौकर) ओकर हत्था बनाबय आ हम माट क गोली बनाबी। बाबू हमरा गुलेती से निशाना लगेबाक लेल उत्साहित करथि। कचमिट्ठा आम खाई ले लोहा क छुरी भेटैत छल। रोज भोरे बाबू जलखै करैत छलाह, दूध-रोटी। ओहि में से हमरा कारा खुअबैत छलाह।
एहने आओर खिस्सा कहब।

बुधवार, 6 जुलाई 2011

प्रारंभ सरकारी हाता सं

दुर्गागंज क सरकारी हाता, अर्थात हमर मात्रिक आ परोपट्टा क माइल स्टोन। बड़का टा हवेली, जे कोनो महल क आभाष दैत अछि। एहिठाम रहैत छलाह हमर मातामह स्व वैद्यनाथ चौधरी आ हमर मातामही स्व प्रेमकिशोरी देवी। अपन मातामह के हम सभ बाबू कहैत छलियैन्हि आ मातामही के नानी। बाबू आ नानी क कतेको गप्प मोन पड़ैत अछि, जकर विवरण एक-एक कय अहां सभ के देब। बाबू आ नानी क हमर जीवन पर गंभीर प्रभाव अछि। कखनो एम्हर-ओम्हर भेला पर जेना ओ दूनू गोटा आबि हमरा सम्हारि लैत छथि। ई दुनू गोटा क हमर जीवन पर कतेक प्रभाव अछि, तकर आकलन शब्द में नहिं कयल जा सकैत अछि। बाबू आ नानी क महत्व बुझा पड़ल हुनका सबहक अवसान क बाद।